M. SINGH Choudhary

M. SINGH Choudhary insan HARISH CHOUDHARY

01/06/2025
लगता है ये दोनों एक ही गोत्र के है।
30/11/2024

लगता है ये दोनों एक ही गोत्र के है।

15/05/2024
02/11/2023
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25/10/2023

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20/08/2023

कठोर सच

परसाई जी की कलम से

1- लडक़ों को, ईमानदार बाप निकम्मा लगता है ।

2- दिवस कमजोर का मनाया जाता है, जैसे हिंदी दिवस, महिला दिवस, अध्यापक दिवस, मजदूर दिवस । कभी थानेदार दिवस नहीं मनाया जाता।

3- व्यस्त आदमी को अपना काम करने में जितनी अक्ल की जरूरत पड़ती है, उससे ज्यादा अक्ल बेकार आदमी को समय काटने में लगती है।

4- जिनकी हैसियत है वे एक से भी ज्यादा बाप रखते हैं । एक घर में, एक दफ्तर में, एक-दो बाजार में, एक-एक हर राजनीतिक दल में।

5-आत्मविश्वास कई प्रकार का होता है, धन का, बल का, ज्ञान का । लेकिन मूर्खता का आत्मविश्वास सर्वोपरि होता है ।

6- सबसे निरर्थक आंदोलन भ्रष्टाचार के विरोध का आंदोलन होता है। एक प्रकार का यह मनोरंजन है जो राजनीतिक पार्टी कभी-कभी खेल लेती है, जैसे कबड्डी का मैच ।

7- हमारे लोकतंत्र की यह ट्रेजेडी और कॉमेडी है कि कई लोग जिन्हें आजन्म जेलखाने में रहना चाहिए वे जिन्दगी भर संसद या विधानसभा में बैठते हैं ।

8- विचार जब लुप्त हो जाता है, या विचार प्रकट करने में बाधा होती है, या किसी के विरोध से भय लगने लगता है, तब तर्क का स्थान हुल्लड़ या गुंडागर्दी ले लेती है ।

9- धन उधार देकर समाज का शोषण करने वाले धनपति को जिस दिन महा जन कहा गया होगा, उस दिन ही मनुष्यता की हार हो गई ।

10- हम मानसिक रूप से दोगले नहीं तिगले हैं । संस्कारों से सामन्तवादी हैं, जीवन मूल्य अर्द्ध-पूंजीवादी हैं और बातें समाजवाद की करते हैं।

11- फासिस्ट संगठन की विशेषता होती है कि दिमाग सिर्फ नेता के पास होता है, बाकी सब कार्यकर्ताओं के पास सिर्फ शरीर होता है ।
12- बेइज्जती में अगर दूसरे को भी शामिल कर लो तो आधी इज्जत बच जाती है।

13- जब शर्म की बात गर्व की बात बन जाए, तब समझो कि जनतंत्र बढिय़ा चल रहा है।

14- जो पानी छानकर पीते हैं, वो आदमी का खून बिना छाने पी जाते हैं।

15- एक बार कचहरी चढ़ जाने के बाद सबसे बड़ा काम है, अपने ही वकील से अपनी रक्षा करना ।

भगवा तो ये भी पहनते थेसंन्यासी भी थेचंदा भी मांगते थेलेकिन अपने एशो-आराम के लिए नहीं, स्कूल चलाने के लिए !इनका नाम था:- ...
10/06/2023

भगवा तो ये भी पहनते थे
संन्यासी भी थे
चंदा भी मांगते थे
लेकिन अपने एशो-आराम के लिए नहीं, स्कूल चलाने के लिए !

इनका नाम था:- स्वामी केशवानंद जी ।
बचपन का नाम:- बिरमा राम जी ढाका
जन्मस्थान:-मंगलूणा (लक्ष्मणगढ़) सीकर

जिन्होंने स्वतंत्रतापूर्व जिला श्रीगंगानगर, बठिण्डा और जिला बहावलपुर में ५८ गांवों में स्कूलें खड़ी की।
संगरिया स्कूल आज ख्यातनाम डीम्ड युनिवर्सिटी है और उसी गुरूकुल पद्धति पर नाममात्र फीस पर क्वालिटी एजुकेशन के साथ संचालित है।

स्वामीजी का केशव वाटिका में बिल्कुल साधारण रहन सहन था
1952 से 1964 तक 12 साल तक सांसद भी रहे थे...

एक बार हरिद्वार से कुछ पंडित संगरिया आए, स्वामी जी की ख्याती सुन केशव वाटिका गये, बातों बातों में उन्होंने वहां भागवत करने की इच्छा जताई।
स्वामी जी ने हंसते हुए कहा "आप जो समझ रहे हो मैं वो साधु नहीं हुंँ, मेरा धर्म तो ये है कि सुबह उठते ही सोचता हूं आज कितने लोगों को विद्यालय से जोड़ना है और इसके लिए क्या प्रयत्न करना होगा ?
यही मेरा कर्म है और यही मेरा ईश्वर है।
क्षमा करना ऐसे धार्मिक कार्यक्रमों में मेरी रूची नहीं है"

ऐसे महापुरुष धरती पर विरले ही आते हैं ।

वरना वर्तमान में एक साल कोई सांसद रह ले या भगवा धारण कर ले तो बहुत कुछ जुगाड़ कर लेता है।

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